तेरा-मेरा इस सच-झूठ की राहों मे बटवारा...!!


सुना है कई बार की पाने से खोने का मज़ा कई ओर ही है...
ओर बाँध आँखो से रोने का मज़ा कुछ ओर ही है...
ओर फिर तो रोते रोते आँसू बने लफ्ज़...
ओर लफ्ज़ बने सायरी...
ओर उस सायरी मई तेरा ज़िक्र करने का मज़ा तो कूछ ओर ही था....!!
कई बार  होता है ना की..
कुछ तुम को सच से नफ़रत थी....
कुछ हम से ना  झूठ बोले गये...

ओर कई बार ...
कुछ लोगो ने तुम्हे उकसाया..,
कुछ अपने ही लोग फूट गये....

कुछ लोग खुद सच के इतने मोहताज ना थे...
कुछ लोग तुमको को  तुम ही से लूट गये...

ओर एक बार ...
कुछ इस तरह हालत बदल गये थे इतने...
क हमारे सजाए  खुवब सारे ही टूट गये...
                                      तेरा-मेरा इस सच-झूठ की राहों मे बटवारा...!!
ओर फिर आख़िर मे ये लोग तेरा-मेरा इस सच-झूठ  की राहों मे बटवारा कर ही  गये ..... !!!
क्यू की ना तुम हमको अपना झूठा अंदाज़ समज़ा सके...!!!
ना मे तुमसे सच उगलवा सकी...!!

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