उसे हम बेटी कहते हैं ।

जून की तपती दोपहर में एक मजदूर सड़क के
बीच में
खड़ा चिल्ला रहा था – अरे, कोई मेरी बेटी
को बचाओ. दो बदमाश उसे बिल्डिंग के अंदर ले
गए हे। उस की पुकार पर एक सेठ ने ड्राइवर से
गाडी रोकने को कहा। सेठ और मजदूर उस
अधबनी
बिल्डिंग में घुस गए । तभी एक लड़की भागती
हुई
बाहर आई। सामने सेठ को देख उस के कदम
ठिठक
गए, पापा कहते हुए वो सेठ जी से लिपट गई।
ये देख मजदूर चुप चाप अपनी राह चल पड़ा ।
ये सब देख सेठजी ने पीछे से आवाज़ दे कर
पूछा, तुम
तो कह रहे थे कि अंदर तुम्हारी बेटी है।
मजदूर बोला – सेठजी, क्या तुम्हारी और क्या
मेरी बेटियां.. ये तो सबकी सांझी होती हैं।
ये सुन सेठ जी भी मजदूर के सामने नतमस्तक
हो गए

उसे हम बेटी कहते हैं ।

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